केरल जैसे शिक्षित राज्य में एक गर्भवती हथिनी मल्लपुरम की
सड़कों पर खाने की तलाश में निकलती है। उसे अनन्नास ऑफर किया जाता है। वह
मनुष्य पर भरोसा करके खा लेती है। वह नहीं जानती थी कि उसे पटाख़ों से भरा
अनन्नास खिलाया जा रहा है। पटाख़े उसके मुँह में फटते हैं। उसका मुँह और जीभ
बुरी तरह चोटिल हो जाते हैं।

फॉरेस्ट
डिपार्टमेंट के जिस ऑफिसर के सामने यह घटना घटी उन्होंने दुःख और बेचैनी
में इसके बारे में फेसबुक पर लिखा। जिसके बाद यह बात मीडिया में आई।
पढ़े-लिखे
मनुष्यों की सारी मानवीयता क्या सिर्फ मनुष्य के लिए ही हैं? ख़ैर पूरी तरह
तो मनुष्यों के लिए भी नहीं। हमारी प्रजाति में तो गर्भवती स्त्री को भी
मार देना कोई नई बात नहीं।
इन
पढ़े-लिखे लोगों से बेहतर तो वे आदिवासी हैं जो जंगलों को बचाने के लिए
अपनी जान लगा देते हैं। जंगलों से प्रेम करना जानते हैं। जानवरों से प्रेम
करना जानते हैं।
वह ख़बर
ज़्यादा पुरानी नहीं हुई है जब अमेज़न के जंगल जले। इन जंगलों में जाने कितने
जीव मरे होंगे। ऑस्ट्रेलिया में हज़ारों ऊँट मार दिए गए, यह कहकर कि वे
ज़्यादा पानी पीते हैं। कितने ही जानवर मनुष्य के स्वार्थ की भेंट चढ़ते हैं।
भारत में हाथियों की कुल संख्या 20000 से 25000 के बीच है। भारतीय हाथी को विलुप्तप्राय जाति के तौर पर वर्गीकृत किया गया है।
एक
ऐसा जानवर जो किसी ज़माने में राजाओं की शान होता था आज अपने अस्तित्व के
लिए लड़ रहा है। धरती का एक बुद्धिमान, समझदार याद्दाश्त में सबसे तेज़,
शाकाहारी जीव क्या बिगाड़ रहा है हमारा जो हम उसके साथ ऐसा सलूक कर रहे
हैं?
कोरोना ने हम
इंसानों का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया है। यह बता दिया है कि हमने प्रकृति
के दोहन में हर सीमा लाँघ दी है। लेकिन अब भी हमें अकल नहीं आई। हमारी
क्रूरता नहीं गई। मनुष्य इस धरती का सबसे क्रूर और स्वार्थी प्राणी है।
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